पाठशाला की आत्मकथा निबंध हिंदी
दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं पाठशाला की आत्मकथा निबंध इन हिंदी तो चलिए पढ़ते हैं हमारे आज के इस बेहतरीन आर्टिकल को
मैं एक पाठशाला हूं। मुझमें पढ़ने के लिए बहुत सारे बच्चे सुबह से शाम तक आते रहते हैं।
पाठशाला में आने में बच्चों को काफी खुशी भी प्राप्त होती है क्योंकि उन्हें यहां से ज्ञान मिलता है लेकिन छोटे-छोटे जिन बच्चों में कोई समझ नहीं होती वह मेरे पास आने से हमेशा कतराते हैं और रोते रोते पाठशाला में पहुंचते हैं।
मैं काफी खुश नसीब हूं कि मैं छोटे-छोटे बच्चों को रोजाना अपने पास आते औऱ जाते देखती हूं। जीवन में पाठशाला बनकर मुझे काफी खुशी होती है मैं जब रविवार को बंद रहती हूं तो मुझे काफी बुरा लगता है क्योंकि मुझे सुबह से शाम तक बच्चों की तरह-तरह की आवाज सुनने की आदत होती है लेकिन रविवार को छुट्टी होने के कारण मैं बिल्कुल भी किसी की आवाज नहीं सुनती तो मुझे काफी बुरा महसूस होता है।
मैं ऐसी जिंदगी पसंद नहीं करती मुझे तो अपने बच्चों के साथ ही अच्छा लगता है। जब कोई त्यौहार आता है तो सब प्रसन्न होते हैं लेकिन मेरी पाठशाला की छुट्टियां होने की वजह से बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते तो त्योहारों के वह दिन मेरे बुरे गुजरते हैं।
जो बड़े छात्र होते हैं वह मेरी कक्षा में आकर काफी प्रसन्नता महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें अपने सवालों के जवाब अपने अध्यापकों से मिल जाते हैं जो भी उन्हें पूछना होता है अपने अध्यापकों से वह पूछते हैं।
जब मेरी कक्षा में अध्यापक प्रवेश करते हैं तो सभी बच्चे अपने अपने स्थान पर बैठ जाते हैं और केवल अध्यापक की आवाज ही सुनाई देती है और जैसे ही अध्यापक क्लास रूम से बाहर जाते हैं तो सिर्फ और सिर्फ बच्चों की आवाज सुनाई देती हैं क्योंकि बच्चे आपस में बातें करते रहते हैं।
वास्तव में मेरी पाठशाला मुझे बहुत ही प्रिय है। मैं हमेशा अपने आप को स्वच्छ बनाए रखने के लिए काफी कोशिश करती लेकिन मुझे स्वच्छ रखने के लिए अध्यापकों को अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहिए, साथ में सभी छात्रों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहिए कि वह इधर-उधर कचरा व्यर्थ में ना फेंके।
अध्यापक भी अपने छात्रों को निर्देश दें कि वास्तव में मुझे स्वच्छ रखना हर किसी का कर्तव्य है।
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Very nice essays.. Its true.
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