Friday, 12 February 2021

दीपक की आत्मकथा Diye ki atmakatha

Diye ki atmakatha

मैं दीपक हूं , मैं दूसरों के जीवन में उजाला करता हूं । बहुत से लोग जब पढ़ाई करते हैं और यदि उस समय लाइट चली जाती है तो मुझे जलाकर वह अपनी पढ़ाई करते हैं । ग्रामीण क्षेत्र जहां पर बिजली की व्यवस्था नहीं है या जहां पर लाइट बार-बार जाती है वहां पर मेरा उपयोग अधिकतर किया जाता है । 

मैं मिट्टी का बना हुआ दीपक हूं मुझे कुम्हार ने बनाया है । जब मेरा निर्माण हुआ तब मैं कुम्हार के साथ एक चारपाई के थैले पर रखा हुआ था । दिवाली के त्योहार के समय मुझे एक महिला ने खरीद लिया वह महिला मुझे अपने साथ लेकर आई उसने मुझे दिवाली के दिन जलाया मैं काफी खुश हुआ । मुझे जलता हुआ देखकर बच्चे , बूढ़े सभी खुश हुए थे । 

दिवाली के समय मेरे जैसे कई अन्य दीपक भी जल रहे थे जो चारों ओर प्रकाश फैला रहे थे । वास्तव में मैंने ऐसा दिवाली का दिन पहली बार ही देखा था । अब दिवाली गुजरे महीना हो चुका है आज भी मुझे रोज जलाया जाता है क्योंकि मैं जिस जगह पर हूं उस जगह पर रात के समय बार-बार बिजली चली जाती है उस समय परिवार के लोगों को मेरी याद आ जाती है । 

वैसे मेरे मालिक के घर में दीपक और भी हैं कुछ दीपक को वह सुबह शाम भगवान की पूजा करते समय जलाते हैं लेकिन मुझे शाम के समय बिजली चली जाने के बाद ही जलाया जाता है । मेरे परिवार के लोग यानी मेरे मालिक मुझे जलाने के लिए मुझमें रुई से बनी हुई एक बत्ती रखते हैं और फिर घी या तेल का उपयोग करके मुझे माचिस के द्वारा जलाया जाता है । 

मैं काफी खुश होता हूं क्योंकि लोगों के जीवन में उजाला करना मुझे काफी पसंद है । यही है मेरे जीवन की आत्मकथा ।

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