Autobiography of a torn book in hindi
मैं एक फटी पुस्तक हूं । जब मेरा जन्म हुआ था तब मैं नई और बहुत ही सुंदर थी । एक माता पिता ने अपने बच्चे के लिए मूझ किताब को मंगवाया था । वह बच्चा मुझ किताब को पाकर काफी खुश हुआ था । उसने घर पर आकर अपने बैग में मुझे रख दिया था । मैं काफी खुश थी क्योंकि मुझे अपना एक नया घर मिल गया था ।
पहले मैं दुकान में सजी रहती थी लेकिन बहुत दिनों तक दुकान में एक ही जगह रखी रखी मैं बोर हो जाती थी । अब मुझे बच्चे का नया बैग मिला तो मुझे काफी खुशी हुई । बच्चा रोज-रोज मुझे बैग में रखकर अपने स्कूल ले जाता था तो मैं काफी खुश होती थी क्योंकि स्कूल में मुझे कई नई नई किताबें भी देखने को मिलती थी जो मेरे पास में ही रखी होती थी लेकिन समय गुजरता गया ।
समय के साथ मैं पुरानी होती और कई जगह से फट गई जिस वजह से बच्चे ने मुझे अलमारी के कोने में रख दिया । अब मैं फटी पुस्तक सोचती कि किसी दिन यह बच्चा मुझे फिर से अपने बैग में रखकर स्कूल ले जाएगा लेकिन मैंने यह क्या देखा कि उस बच्चे ने मेरे ऊपर कई अन्य फटी किताबें भी रख दी । अब मैं समझ भी गई थी कि मैं अब फस गई हूं ।
शायद अब यह बच्चा मुझे कभी भी अपने साथ बैग में रखकर नहीं ले जाएगा । मुझे काफी दुख होने लगा था लेकिन मैं सोचने लगी थी कि हर किसी का जीवन ऐसा ही होता है । जब समय गुजर जाता है और हर एक जीव जंतु का शरीर पुराना हो जाता है तो उसका यही हाल होता है । ऐसा ही मेरे साथ हो रहा है ।
एक दिन मैंने देखा कि घर के मालिक ने मुझे एक किताबें खरीदने वाले व्यक्ति को बेच दिया और वह व्यक्ति मुझे अन्य किताबों के साथ ले जाकर एक घर में रख दिया था । अब इस सुनसान अंधेरे वाले कमरे में मैं रहती थी । मुझे इसकी आदत नहीं थी लेकिन शायद अब मुझे यहीं पर कुछ समय के लिए रहना पड़ेगा । यही है मेरे जीवन की आत्मकथा ।
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ReplyDelete(अ) दीदी या बहन की शादी पर अवकाश के लिए आवेदन पत्र
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