डाकिया की आत्मकथा
autobiography of postman in hindi
मैं एक डाकिया हूं कुछ लोग मुझे पोस्टमैन कह कर भी पुकारते हैं। मेरा कार्य पोस्ट ऑफिस से कई तरह के दूसरों के द्वारा भेजे गए पत्र, मनीआर्डर आदि भेजना होता है मैं गली मोहल्लों में घूमता हुआ लोगों के घर पर पत्र भेजता हूं। मैं साइकिल से घूमते हुए लोगों के घर के दरवाजे पर पहुंचता हूं और आवाज लगाता हूं कि आपका पत्र आया है या आपके लिए मनीआर्डर आया है।
मैं एक तरह से सामान्य वर्ग का व्यक्ति हूं मेरे जैसे पोस्ट में ज्यादातर साइकिल से ही पत्र लाते हैं क्योंकि हमारी ज्यादा सैलरी भी नहीं होती है। मैं अपनी जिंदगी में इतने में ही संतुष्ट रहता हूं मुझे ज्यादा कुछ चाहा नहीं होती है मैं सुबह-सुबह पोस्ट ऑफिस पहुंच जाता हूं और देखता हूं कौन-कौन से नए पत्र आए हुए हैं और उन पत्रों को मैं कहां कहां पहुंचाऊंगा।
यह सब जानकारी लेकर और अपने बैग में पत्रों को रखकर मैं अपनी साइकिल से फील्ड में चला जाता हूं यह सब कार्य मुझे काफी पसंद भी है क्योंकि मुझे घूमना फिरना, नए नए लोगों से मिलना जुलना काफी अच्छा लगता है। मैं अपने कार्य से खुश हूं मैं अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवा रहा हूं मेरा बच्चा एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है और मैं कोशिश करूंगा कि मेरा बच्चा आगे चलकर अच्छे उच्च स्तर की नौकरी करें या कोई अच्छा बड़ा बिजनेस करें मैं उसे बड़ा आदमी बनता हुआ देखना चाहता हूं लेकिन ऐसा चाहता हूं कि वह अपने कार्य में पूरी इमानदारी बरतकर जीवन को जिये।
मैं जो अपनी साइकिल पर सवार होकर मोहल्ले और गांव गांव, शहर शहर में घूमता हूं तो मुझे कई तरह के लोग मिलते हैं कुछ लोग मुझे चाय पानी पीने का कहते हैं लेकिन कुछ लोग मेरा इस तरह से अभिवादन नहीं करते मैं रोजाना नई नई कालोनियों में में घर-घर पत्र बांटता रहता हूं इसलिए मैं बहुत सारे लोगों को भी जानता हूं यही है मेरे जीवन की आत्मकथा।
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