बेचारा बचपन निबंध
बेचारा बचपन वास्तव में हर किसी को याद आता है। बचपन में हम हमेशा अपनी धुन में मनमुग्ध रहते हैं और चिंता मुक्त होते हैं। जब हम बड़े हो जाते हैं तो कई तरह की पारिवारिक एवं कामकाज की चिंता रहती है लेकिन जब हम बच्चे होते हैं तो चिंता मुक्त जीवन जीते हैं।
Bechara bachpan essay in hindiमैं भी सुबह सुबह जल्दी जागकर नहा धोकर स्कूल जाता था, हमेशा स्कूल से वापस आने की राह देखता था क्योंकि मुझे खेलना कूदना धूल में लोटपोट होना बहुत ही अच्छा लगता था। मैं स्कूल से आने के बाद अपने घर के पास एक इमली के पेड़ के नीचे खेलता था। वहां पर मेरे कुछ दोस्त भी खेलने के लिए आते थे। हम साथ में मिलजुलकर खेलते थे तो हमें बहुत ही अच्छा लगता था।
खेलते खेलते कपड़े भी धूल से लिपट जाते थे। जब शाम होती थी तो हम छुपा छुपी खेल खेलते थे। मैं अपने दोस्तों में सबसे छोटा था, बचपन में छुपा छुपी के खेल में मैं ज्यादातर हार जाता था क्योंकि आसान जगह पर भी मैं अपने दोस्तों को नहीं डूड पाता था। मैं हमेशा श्याम को छुपा छुपी खेलता था और जब घर पर जाता था तो मेरी मां बहुत डांटती थी क्योंकि मैं पूरा धूल में लिपटा हुआ रहता था। मेरा बेचारा बचपन ऐसा गुजरा।
बचपन में हम जैसा सीखते हैं ज्यादातर बड़े होकर भी हम वैसा ही जीवन गुजारते हैं और बचपन में सीखी हुई उन बातों को हमेशा अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। बचपन में मुझे गाय के छोटे-छोटे बच्चों को खिलाना बहुत ही अच्छा लगता था। हमारे घर पर आज दो गाय थी। अकसर में जब शाम को खेलकूद से वापस घर पर आता था तो जहां पर गाय बंधी होती थी वहां पर पहुंच जाता था और गाय के बछड़े के साथ कुछ समय बिताता था। मुझे यह सब बहुत ही अच्छा लगता था गाय के बछड़े के साथ मेरा कुछ अपनापन सा जुड़ गया था।
कभी-कभी मैं गाय के बछड़े को अपने घर के अंदर भी ले आता था। मेरी मां मुझसे मना करती थी लेकिन मैं गाय के बछड़े को कुछ समय तक घर के अंदर ही रखने की जिद करता था। मेरी बचपन की कुछ शरारते और कुछ अपनी जीद को पूरी करने की बातें परिवार वालों को कभी कभी हंसाती थी कभी थोड़ा गुस्सा भी कर देती थी। मेरे यह बचपन के दिन मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है।
दोस्तों हमारे द्वारा लिखा ये बेचारा बचपन आर्टिकल आप अपने दोस्तों में शेयर करना ना भूले और हमें सब्सक्राइब करें धन्यवाद।
0 comments:
Post a Comment