Thursday, 14 May 2020

जिस दिन सब कुछ गलत होता गया पर निबंध jis din sab kuch galat hota gaya essay in hindi

जिस दिन सब कुछ गलत होता गया पर निबंध

हम सभी के जीवन में कई ऐसे दिन आते हैं जिन दिनों हमारे साथ बहुत कुछ अच्छा होता है कुछ दिन ऐसे भी होते हैं जिस दिन अच्छा भी होता है और हमारे साथ कुछ बुरा भी होता है लेकिन मेरे जीवन में एक ऐसा दिन भी आया जिस दिन मेरे साथ सब कुछ गलत होता गया वह दिन में कभी भी नहीं भूलूंगा।


 मैं जब सुबह जागा तो मैंने देखा कि मेरे सामने अखबार पढ़ा हुआ है जब मैंने अखबार उठाया और जब अखबार में खबर पढ़ी तो मैंने देखा कि सबसे पहले पेज पर ही एक खबर थी जिसमें लिखा हुआ था की किसी कारण बस मेरे एग्जाम 2 महीने बाद शुरू ना होकर 20 दिन बाद ही शुरू होंगे यह जानकर मुझे काफी बुरा लगा क्योंकि मैंने अभी मेरे विषयों की पूरी तरह से तैयारी नहीं की थी।


 यह मेरे लिए सचमुच बहुत बुरा था अब मुझे बहुत ही तेजी से तैयारी करना था जिसके लिए शायद मैं पूरी तरह से तैयार नहीं था मैंने सोचा चलो ठीक है जो होगा देखा जाएगा। अखबार के कुछ पन्ने बदलने के बाद मुझे कोई भी खास खबर नजर नहीं आई और फिर मैं अपनी दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर कॉलेज जाने लगा जैसे ही मैंने घर के बाहर कदम रखा तो रिश्तेदार हमारे घर पर आए हुए थे घर पर कोई नहीं था मैं अकेला ही था जिस वजह से मुझे उनके साथ और रुकना पड़ा।

 उस दिन में कॉलेज ही ना जा पाया मैं अक्सर बाहर का खाना खाता था क्योंकि खाना बनाना मुझे ठीक से नहीं आता था खाना बनाने में मुझे आलस भी आता था लेकिन घर पर आए हुए मेहमानों को खाना तो खिलाना ही था मैंने अपने पर्स में देखा तो उस रुपए बहुत ही कम थी मैंने जब अपना बैंक अकाउंट चेक किया तो मैंने देखा कि आज सुबह ही मेरे बैंक अकाउंट से ₹3000 गायब है यह देखकर मैं अपने आप को काफी कोसने लगा।


 मैंने सोचा कि आज मेरे साथ यह सब हो क्या रहा है अब मुझे मेहमानों के लिए घर पर ही खाना बनाना था मैंने खाना बनाना शुरू किया और फिर सब्जी एवं रोटी बनाने के बाद मेहमानों को खिलाना शुरू किया तो मेहमानों ने मुझे बताया कि सब्जी में नमक ज्यादा डल गया है अब मैं करता भी क्या यह सब देखकर मैं काफी चिंतित था जब मेहमानों के खाना खाने के बाद वह चले गए तो मैंने जल्दी-जल्दी घर से निकलकर बैंक जाना उचित समझा।


मुझे पूछताछ करना था कि आखिर मेरे बैंक अकाउंट से रुपए कहां गए मैं जब घर से बाहर निकला तो मैंने देखा कि अक्सर मुझे टैक्सी तुरंत ही मिल जाती थी लेकिन आधे घंटे इंतजार करने के बाद भी मुझे टैक्सी नहीं मिली मैं घर के बाहर सड़क पर तेज धूप में खड़ा रहा मुझे बहुत बुरा लगा काफी देर बाद एक टैक्सी मिली मैं उसमें सवार होकर बैंक की ओर जाने लगा रास्ते में ही टैक्सी का पहिया पंचर हो गया आखिर उस टैक्सी वाले ने मुझे वहीं पर उतार दिया और वह पंचर सही करवाने लगा पर मैंने दूसरी टैक्सी देखी और उसमें सवार हुआ या जैसे ही मैं उस टैक्सी में बैठने ही वाला था।


 जैसे ही मैंने उस टैक्सी में अपना पहला पैर रखा एकदम से मैं नीचे गिर पड़ा मेरे चौट भी आ गई और हाथों से ब्लड भी निकलने लगा अब मैं इस स्थिति में बैंक जा नहीं सकता था इस वजह से अब मैं बैंक में ना जाकर किसी अस्पताल या क्लीनिक की तलाश कर रहा था मैं एक अस्पताल पहुंचा काफी लंबी लाइन अस्पताल में लगी हुई थी काफी देर बाद मेरा नंबर आया और मैंने इलाज करवाया और फिर जब मैंने समय देखा तो शाम के 5:00 बज चुके थे।


 अब मैं बैंक भी नहीं जा सकता था अब मैं उस हॉस्पिटल से अपने घर की ओर जाने लगा तभी यह कुत्ता मेरे पीछे पड़ गया और आखिर में उस कुत्ते ने मुझे काट खाया मैं फिर से उस अस्पताल की ओर जाने लगा फिर मैंने वहां पर अपना इलाज करवाया और फिर वापस टैक्सी पकड़ कर अपने घर आ गया घर पर आकर मैंने सोचा कि बैंक के कस्टमर केयर पर ही कंप्लेंट कर दू। मैंने फोन लगाया लेकिन फोन नहीं लगा मुझे आज काफी दुख हो रहा था कि आज मेरे साथ सिर्फ और सिर्फ बुरा क्यों हो रहा है।


आखिर में मैं फिर सो गया और जब सुबह जागा तो मुझे ध्यान आया कि 15 दिन पहले मैंने मेरे पिताजी को ₹3000 अपने अकाउंट में से निकाल कर दिए थे मैं यह सोचकर खुश तो था लेकिन काफी दुखी भी था कि कल मेरे साथ इतना बुरा क्यों हुआ।

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