Saturday, 23 May 2020

भूमि की आत्मकथा Autobiography of earth in hindi

भूमि की आत्मकथा

मैं भूमि हूं लोग मुझे कई तरह के नामों से पुकारते हैं कुछ लोग मुझे धरती कहते हैं तो कुछ लोग मुझे पृथ्वी भी कह कर पुकारते हैं कुछ लोग जब मुझे धरती मां कहते हैं तो मुझे बहुत ही अच्छा लगता है मैं काफी समय से अपने जीवन को यापन कर रही हूं लोग मुझे काफी श्रद्धा की नजर से देखते हैं।


 मेरे ऊपर हर एक जीव-जंतु, पेड़-पौधे निवास करते हैं मनुष्य मेरे ऊपर जीवन यापन करने वाला एक ऐसा जीव है जो कि सबसे शक्तिशाली है वह सबसे शक्तिशाली इसलिए भी माना जाता है क्योंकि सभी जीव जंतुओं की अपेक्षा मनुष्य में दिमागी शक्ति सबसे तेज होती है जिस वजह से वह असंभव को भी संभव करके दिखाता है। मेरे ऊपर ऐसे ऐसे सुंदर जीव जंतु निवास करते हैं जो मेरी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं।
कई  चाहकने वाले पक्षी और जीव जंतु मेरी पृथ्वी पर निवास करते हैं।


एक किसान के लिए मैं भूमि सबसे बढ़कर हूं क्योंकि किसान मुझ पर पूरी तरह से निर्भर है किसान मुझ में फसल उगता है जिससे उसका जीवन गुजरता है साथ में वह अन्य लोगों की मदद करता है। किसान को कई लोग भूमिपुत्र भी कहते हैं लेकिन सच में इस पृथ्वी पर रहने वाला हर एक जीव जंतु, मनुष्य सभी मेरे पुत्र हैं मैं सब की जननी हूं मेरी भूमि पर ही मनुष्य जीव जंतुओं के लिए अति आवश्यक तत्व जल है जिससे हर एक जीव जंतु अपनी प्यास भुजाता है।


 मैं कभी-कभी यह सोचकर दुखी होती हूं कि आजकल के आधुनिक युग में लोग मेरे साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं दरअसल लोग अपने कुछ फायदे के लिए मेरी भूमि में कई तरह के रासायनिक हानिकारक खादों का उपयोग करते हैं जिससे मेरी उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है और धीरे-धीरे मनुष्य को, किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।



 देश के जवान मेरी मिट्टी को माता के समान समझकर अपने सर पर लगाते हैं कई जवान अपने देश की रक्षा के लिए मेरी मिट्टी में मिल जाते हैं और शहीद हो जाते हैं मैं हमेशा अपने सभी पुत्रों से एक सा ही व्यवहार करती हूं लेकिन पता नहीं लोग मुझे कई तरह से नुकसान क्यों पहुंचा रहे हैं। आजकल मेरी भूमि में कई तरह के हानिकारक पदार्थ मनुष्य मिला रहा है इन हानिकारक पदार्थों में कई रासायनिक केमिकल एवं पॉलिथीन है जिससे मेरी उर्वरक क्षमता को नुकसान होता है जिससे किसानों को भी काफी नुकसान होता है।



मैं जीवन में कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचती हमेशा सभी का अच्छा चाहती हूं लेकिन हर कोई अपने कर्मों पर निर्भर रहता है इसी तरह पृथ्वी पर यापन करने वाला प्रत्येक जीव जंतु मनुष्य अपने कर्मों पर निर्भर है अगर कोई मनुष्य मुझे किसी तरह से नुकसान पहुंचाता है तो उसका दुष्प्रभाव उस मनुष्य को मिलता है मैं इसमें बिल्कुल भी कुछ नहीं कर सकती यह तो अपने कर्मों का फल होता है।


मैं मिट्टी हूं लोग मेरे द्वारा ही रहने के लिए घर बनाते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं मनुष्य ही नहीं जीव जंतु, कीड़े मकोड़े, पक्षी सभी मेरी मिट्टी के द्वारा ही अपना घर बनाते हैं मैं काफी खुश रहती हूं यह सब सोचकर कि मैं हर किसी के लिए काफी उपयोगी साबित होती हूं।


दोस्तों मेरे द्वारा लिखी यह मिट्टी की आत्मकथा एक काल्पनिक आर्टिकल है इसे आप अपने दोस्तों में शेयर करना ना भूलें और हमें सब्सक्राइब भी जरूर करें।

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