वृद्धों की सेवा ईश्वर सेवा पर निबंध
वृद्धों की सेवा ईश्वर सेवा वास्तव में यह बात हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज के इस आधुनिक युग में बहुत कुछ बदल रहा है कई लोग ऐसे होते हैं जो ईश्वर की सेवा तो करते हैं लेकिन अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों या वृद्धों की सेवा नहीं करते हैं तो ईश्वर की सेवा करना बेकार है।
वास्तव में वृद्धों की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने बुजुर्ग, माता-पिता को घर से बाहर निकाल देते हैं या फिर वृद्धा आश्रम में भेज देते हैं वह बुढ़ापे में उनकी इतनी सी भी मदद नहीं कर पाते कि उनको दो वक्त का खाना दे सकें ऐसे लोग कितनी भी ईश्वर की सेवा क्यों ना करें ईश्वर उनसे कभी प्रसन्न नहीं हो सकता क्योंकि वृद्धों की सेवा ही ईश्वर सेवा होती है।
हम सभी को यह सब समझने की जरूरत है तभी हम अपने समाज और इस देश के लिए कुछ बड़ा कर सकेंगे क्योंकि हम सभी के लिए बुजुर्ग सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। बुजुर्ग परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें रास्ता दिखाते हैं बुजुर्ग ही हमें अच्छे संस्कार देते हैं, हर तरह से हमारी मदद करते हैं यदि हम वृद्धों की सेवा नहीं करते हैं तो ईश्वर हमसे बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं होता।
आज हम देखे तो कई सारे लोग ऐसे होते हैं जो अपने कामकाज या नौकरी की वजह से अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़कर हर किसी दूसरे शहर चले जाते हैं और फिर वहां अपने बीवी बच्चों के साथ जीवन यापन करते हैं ऐसे लोग शायद अपने बुजुर्ग माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं हर किसी को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
जिस तरह से माता-पिता अपने बच्चों का बचपन से लेकर 18 साल तक भरण-पोषण करते हैं उनकी देखरेख करते हैं उसी तरह से हर एक बच्चे का कर्तव्य है कि वह बड़ा होकर अपने बुजुर्गों की देखभाल करें उनके प्रति हर एक कर्तव्य को निभाए यही ईश्वर सेवा होती है।
कई जगह ऐसा देखा जाता है कि आजकल के नौजवान अपने बूढ़े मां-बाप के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं इस वजह से भी वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहते क्योंकि आजकल देखा गया है कि इस जमाने में कई तरह के नए नए फैशन रहने की कई नए नए तौर-तरीके आ चुके हैं जो बुजुर्ग व्यक्तियों ने कभी भी देखा नहीं होता इस वजह से नौजवानों का बुजुर्ग व्यक्तियों के साथ व्यवहार सही नहीं रहता।
इस वजह से भी वह अपने बुजुर्गों से दूर जाना चाहते हैं वास्तव में हम सभी का परम कर्तव्य है कि हम बुजुर्गों को पूरा मान सम्मान दें और उनके प्रति अपने हर एक कर्तव्य को निभाना तभी हम जीवन को सही ढंग से जी सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि वृद्धों की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है वृद्धों को जरूरत होती है।
बुढ़ापे में किसी की सहायता की जो उनकी देखरेख कर सके उनका भरण-पोषण कर सके। उनकी हर समस्या में उनका सहयोग कर सकें लेकिन आजकल के कई सारे नौजवान अपने बूढ़े मां बाप आप का साथ नहीं देते मैं उनसे अलग रहना ही पसंद करते हैं यह सब बिल्कुल भी सही नहीं है वास्तव में वृद्धों की सेवा ही ईश्वर सेवा है।
दोस्तों मेरे द्वारा लिखा यह निबंध आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं और हमें सब्सक्राइब करना ना भूलें।
वृद्धों की सेवा ईश्वर सेवा वास्तव में यह बात हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज के इस आधुनिक युग में बहुत कुछ बदल रहा है कई लोग ऐसे होते हैं जो ईश्वर की सेवा तो करते हैं लेकिन अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों या वृद्धों की सेवा नहीं करते हैं तो ईश्वर की सेवा करना बेकार है।
वास्तव में वृद्धों की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने बुजुर्ग, माता-पिता को घर से बाहर निकाल देते हैं या फिर वृद्धा आश्रम में भेज देते हैं वह बुढ़ापे में उनकी इतनी सी भी मदद नहीं कर पाते कि उनको दो वक्त का खाना दे सकें ऐसे लोग कितनी भी ईश्वर की सेवा क्यों ना करें ईश्वर उनसे कभी प्रसन्न नहीं हो सकता क्योंकि वृद्धों की सेवा ही ईश्वर सेवा होती है।
हम सभी को यह सब समझने की जरूरत है तभी हम अपने समाज और इस देश के लिए कुछ बड़ा कर सकेंगे क्योंकि हम सभी के लिए बुजुर्ग सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। बुजुर्ग परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें रास्ता दिखाते हैं बुजुर्ग ही हमें अच्छे संस्कार देते हैं, हर तरह से हमारी मदद करते हैं यदि हम वृद्धों की सेवा नहीं करते हैं तो ईश्वर हमसे बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं होता।
आज हम देखे तो कई सारे लोग ऐसे होते हैं जो अपने कामकाज या नौकरी की वजह से अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़कर हर किसी दूसरे शहर चले जाते हैं और फिर वहां अपने बीवी बच्चों के साथ जीवन यापन करते हैं ऐसे लोग शायद अपने बुजुर्ग माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं हर किसी को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
जिस तरह से माता-पिता अपने बच्चों का बचपन से लेकर 18 साल तक भरण-पोषण करते हैं उनकी देखरेख करते हैं उसी तरह से हर एक बच्चे का कर्तव्य है कि वह बड़ा होकर अपने बुजुर्गों की देखभाल करें उनके प्रति हर एक कर्तव्य को निभाए यही ईश्वर सेवा होती है।
कई जगह ऐसा देखा जाता है कि आजकल के नौजवान अपने बूढ़े मां-बाप के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं इस वजह से भी वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहते क्योंकि आजकल देखा गया है कि इस जमाने में कई तरह के नए नए फैशन रहने की कई नए नए तौर-तरीके आ चुके हैं जो बुजुर्ग व्यक्तियों ने कभी भी देखा नहीं होता इस वजह से नौजवानों का बुजुर्ग व्यक्तियों के साथ व्यवहार सही नहीं रहता।
इस वजह से भी वह अपने बुजुर्गों से दूर जाना चाहते हैं वास्तव में हम सभी का परम कर्तव्य है कि हम बुजुर्गों को पूरा मान सम्मान दें और उनके प्रति अपने हर एक कर्तव्य को निभाना तभी हम जीवन को सही ढंग से जी सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि वृद्धों की सेवा ही ईश्वर की सेवा होती है वृद्धों को जरूरत होती है।
बुढ़ापे में किसी की सहायता की जो उनकी देखरेख कर सके उनका भरण-पोषण कर सके। उनकी हर समस्या में उनका सहयोग कर सकें लेकिन आजकल के कई सारे नौजवान अपने बूढ़े मां बाप आप का साथ नहीं देते मैं उनसे अलग रहना ही पसंद करते हैं यह सब बिल्कुल भी सही नहीं है वास्तव में वृद्धों की सेवा ही ईश्वर सेवा है।
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