Sahitya samaj ka darpan hai essay in hindi
हेलो दोस्तो कैसे हैं आप सभी, दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल साहित्य समाज का दर्पण पर निबंध आप सभी के लिए काफी जानकारी देगा और स्कूल कॉलेजों के बच्चों के लिए परीक्षा के समय यहां से जानकारी ले सकते हैं तो चलिए पढ़ते हैं आज के हमारे इस sahitya samaj ka darpan hai essay in hindi आर्टिकल को।
sahitya samaj ka darpan hai essay in hindi
साहित्य समाज का दर्पण
साहित्य वो होता है जिसमें समाज के बारे में अच्छाई, बुराई जो भी समाज में होता है वह सब साहित्य में होता है। साहित्य में समाज की कुप्रथा, बुराइयां, अच्छाइयां और जितनी भी प्रथाएं होती है तो सब साहित्य में आती है साहित्य समाज के लिए एक दर्पण की तरह है जिस तरह मनुष्य दर्पण के आगे खड़े होकर अपने आप को देखता है उसी तरह समाज के बारे में साहित्य में सब कुछ होता है।
समाज में ऐसा बहुत कुछ होता है जैसे आतंकवाद, कुप्रथा, गरीबी, बेरोजगारी, सुख-दुख, आशा निराशा, साहस भय, उत्थान पतन, सती प्रथा, बाल विवाह प्रथा ऐसे बहुत सी प्रथाएं होती है जिस वजह से समाज को साहित्य समाज का दर्पण कहते हैं समाज में लोग पुरानी प्रथाओं को आगे लेकर अपना जीवन यापन करते हैं प्रथाओं का पालन करते हैं।
समाज वो होता है जिसे मनुष्य साथ रहकर एक समूह बनाते हैं उस समूह को हम समाज कहते हैं समाज के लोग सभी मिलकर परिवार वालों के साथ मिलकर, आस पास के पड़ोसियों के साथ मिलकर समाज में जीवन यापन करते हैं और इसी तरीके से आगे समाज बट जाता है और बच्चे शहरों में कहीं कहीं दूर चले जाते हैं और वे भी दूसरे लोगों के साथ मिलकर अपना नया परिवार बना कर अलग समाज बना लेते हैं। मनुष्य जहां भी जाते हैं वहां समूह में रहकर अपने समाज में जीवन यापन करते हैं यही समाज शहरों में जाकर साहित्य बन जाता है। मनुष्य तो आज जाति धर्म और संप्रदाय के आधार पर बट गया है लेकिन मनुष्य के मस्तक में तो एक ही बात होती है कि हम सब मिलकर रहें यही आगे चलकर साहित्य बन जाता है इसलिए लोग कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है।
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